Saturday, April 13, 2013

ऐसी भी क्या जल्दी है?


अब मैं सुराखों में 
और दरमियानों के ठहराव में 
जीना सीख गया हूँ,
मुफ़लिसी थामे है उंगली 
घूरे है सहमी, कातर नज़र से
जब कौंधे मन में ख़याल 
"झटको पल्ला,
उठ बैठो तुनक के
खदेड़ो दूर इस कुलच्छिनी की प्रेतछाया को"
हाथ टिकाये ठोड़ी पर,
सोचूँ मैं विस्मय से,
यारों से क्या कभी 
यूं बेमुरौवती करते हैं भला?

Translation:

Now, in the holes in walls
And in the stasis between moments
I have learnt how to live
Poverty clutches at my fingers
Stares with eyes awash in fear
When the thought strikes
"Spurn her company
Stand up and arrive
Chase away the unholy shadow of the skank"
Holding the chin in my hands
I wonder in amazement
Does one, with their friends
Be ever so heartless?

4 comments:

ankurpandey said...

jahanpanaah tussi great ho, tohfa qabool karo.. :)

'और ख़ासकर के, उसे,
जिसे अभी,
अब जाकर के,
छोड़ पाना मुमकिन हो पाया हो
उसी नामुराद उलझन की,
कातर उन कमबख्त आँखों में देखकर..
फिर एक बार साल्सा किया जाए!'

ankurpandey said...

jahanpanaah tussi great ho, tohfa qabool karo.. :)

'और ख़ासकर के, उसे,
जिसे अभी,
अब जाकर के,
छोड़ पाना मुमकिन हो पाया हो
उसी नामुराद उलझन की,
कातर उन कमबख्त आँखों में देखकर..
फिर एक बार साल्सा किया जाए!'

Nanga Fakir said...

वाह उस्ताद वाह! सवाल एक जवाब दो, सवाल जवाब, सवाल जवाब…. चुप्प्प…एक लम्बी ख़ामोशी

Aadii said...

Superb!!
Even loved the comment :)