Monday, December 27, 2010

Bildungsroman

Udaan is a fantastic film. A coming of age adventure not just for the protagonist but also for Ronit Roy - from his weak, floundering beginnings in obscure flicks like Jaan Tere Naam (remember its undeniably catchy title song - "ये अक्खा इंडिया जानता है हम तुम पे मरता है/दिल क्या चीज़ है जानम अपनी जान तेरे नाम करता है." (translated as:"This, the whole India knows that I('ll) die for you/What is the heart O love! I pledge my life to you.")?), to his stardom in the saas-bahu sagas of Balaji Telefilms to Udaan in which he reinvents himself as the impossibly strict, tyrannical, borderline psychotic father and gives a brilliant, bravura performance.

Bravo!

Sunday, December 26, 2010

The Croak of Rana Tigrina

Om Dar-ba-dar is the arbitest film NF's ever seen. Period. He very, very humbly posits that he didn't understand any-fucking-thing in the movie. Total overhead transmission.

Take that you David Lynches, you Luis Bunuels, you Andrzej Żuławskis. Yes take that! The mother of all supremely arbit films was made in India.

The film is shoddily made, the voice dubbing is horrible, the production standards are of dubious quality, that NFDC produced it, is cause for concern for the taxpayers, the plot is totally nonsensical, the scenes are crazily funny at times and the dialogues seem to be out of a random word generating machine.

No Smoking is just a very slick urban cousin and is just a couple of decades too late. Anurag Kashyap, take that, you too!

Kamal Swaroop's balls are bigger than Pamela Anderson's boobs.

Rather than spill more digital ink, NF'll direct you to read this fantastic review. Do read it and do see the film for a very rustic, very Indian kind of mindfuck.


Thursday, December 16, 2010

Pandora's Box

#1: Pandora's music classification system is totally brilliant.
#2: ...
#1: So I create this Kumar Gandharva station right?
#2: <*nods*>
#1: And it totally gets what I like in Hindustani classical. It's so cool that an AI knows what you'll want based on what you want. It categorized my preference for Kumar Gandharva on the basis of his insane skills in improvisation, his transcending of musical gharanas, his favoring of vilambit laya over drut laya and went on to play Mallikarjun Mansur, Bade Ghulam Ali Khan Sahab and Ustad Amir Khan.

<*#1 gets a little overpowered by emotion*>

#0: Man, that is so punk rock!

Wednesday, December 15, 2010

On Pedantry and Antfucking

B: You see that Japanese girl over there?
NF: Uh huh...
B: She's very hot.
NF: ...
B: You don't seem to agree.
NF: I don't think she's hot. But I think she's very cool though.
B: Oh but you have to be cool to be hot.
NF: Yes. Necessary but not sufficient.

Saturday, December 04, 2010

दुबे कौन कुमति तोहे लागी?

(टाइटल काशीनाथ सिंह की कहानी "पाणे कौन कुमति तोहे लागी?" से चुराया गया है.)

...

दुबेजी लम्पट नगर के उभरते हुए पंडों में से एक माने जाते हैं. उम्र भले ही बीस/पचीस की हो, लेकिन अपनी पैनी सोच, विद्वता, हाज़िरजवाबी और सबसे गौरतलब - अपनी आधुनिकता के कारण वे लम्पट नगर के धार्मिक, ज़रा-प्रौढ़, मध्यवर्गीय तबके के विशिष्ट सत्यनारायण-भगवान-कथा-संचालक माने जाते हैं.

पण्डे भले हों, लेकिन पुराणपंथी और दकियानूसी वे कतई नहीं हैं. बड़ी ही खुली सोच है दुबेजी की. उनकी कथाओं-के-बीच-छुपी-हुई आध्यात्मिक/लोकज्ञान-वर्धक सूक्तियां (जो विशेषतः अपने तीसरे दशक की चौखट पर खड़ी महिलाओं में आश्चर्यजनक रूप से लोकप्रिय हैं) अक्सर अंग्रेजी फिल्मों, पाश्चात्य संगीत और उत्तर-आधुनिक साहित्य से प्रेरित होती हैं. अपने बिचारे यजमान भले ही इनके स्रोत से अपरिचित हों, यह अज्ञान उनके रसास्वादन के रास्ते नहीं आता है. अपने इन्हीं सब गुणों के कारण लम्पट नगर में दुबेजी की बड़ी पूछ है. आप ही बताइए, दुनिया में कितने पण्डे आपको मिलेंगे जो धोती-कुरता-गमछा धारण करते हों और ब्लैक सैबथ के हेवी मेटल पर हेडबैंगिंग करते हों? (उनके साथी पण्डे इनकी इस आदत को "मुंड-कम्पन" का नाम देते हैं.)

ओह! और आपको यह बताना तो हम भूल ही गए कि दुबेजी अपने घोंघा बसंत के स्कूली सहपाठी, पड़ोसी, घनिष्ठ मित्र थे (घोंघा भइया भी अपने बचपन में लम्पट नगर के निवासी थे).

खैर, इन सब बातों को जाने दीजिये. फिलहाल हम दुबेजी को लम्पट नगर के पहले लैंडमार्क-पुस्तक-भवन में प्रवेश करते देख रहे हैं. अपने धोती-कुरते-गमछे-हलकी-दाढ़ी में बड़े ही सुदर्शन लगते हैं हमारे दुबेजी! और वह काली छतरी, काले बूट और मैचिंग ज़ुराबें तो क्या खूब ही फबती हैं उनपर!

पहला आधा घंटा दुबेजी साहित्य सेक्शन में ग़र्क करते हैं. कामू और सार्त्र के गहन अध्ययन से उत्पन्न बोझिलता से मुक्त होने के लिए वे कुछ हल्का पढ़ते हैं और हास्य-व्यंग्य की विधा में सिद्धहस्त लेखकों की शरण में कुछ समय व्यतीत करते हैं. टॉम रोबिन्स, क्रिस्टोफर मूर, गैरी श्टेन्गार्ट आजकल उनके प्रिय व्यंग्यकार चल रहे हैं. वे अपने आप से वादा करते हैं कि श्टेन्गार्ट की "सुपर सैड ट्रू लव स्टोरी" ज़रूर खरीदेंगे, और आगे बढ़ जाते हैं.

खैर, अगला पड़ाव म्यूजिक सेक्शन.

एक लड़की बोस हेड फ़ोन लगाये म्यूजिक सेक्शन में कुछ सुनती हुई दिखाई देती है. लम्बे, काले बाल, घुटनों पर हलकी सी फटी जींस; एक लम्बी, ढीली, गहरे गले वाली टी शर्ट (उसके साइज़ से ज़रा बड़ी सी - "शायद उसके बड़े भाई की होगी" - दुबेजी आशापूर्वक सोचते हैं) जिसपर आयरन मेडेन के मैस्कट "एड्डी" की वीभत्स तस्वीर चिपकी हुई है. लड़की के हाथ हेड फ़ोन पर हैं और उसका सिर हल्का-हल्का झूमता सा दिख रहा है.

यह देखना काफी आसान है कि लड़की ज़रा भी बन-ठन के नहीं आई है. और यह देखना उससे भी ज़्यादा आसान है कि उसे बन-ठन के आने कि कोई ज़रुरत नहीं है. उसके पूरे व्यक्तित्व से एक अलसाई मादकता टपक रही है; एक लापरवाह, लापता सी नैसर्गिक खूबसूरती, जो ज़रा चढ़ी-चढ़ी, उबासी भरी आँखों से आपको देखती है और बेबस सा कर देती है. सैद्धांतिक/दार्शनिक तौर पर दुबेजी इस प्रकार की सुन्दरता से भली-भांति परिचित हैं. यह खूबसूरती एक अजब प्रकार के वैभव से उत्पन्न होती है जिसकी व्याख्या करना ज़रा मुश्किल होगा. इस ख़ास प्रकार की खूबसूरती में धन के माध्यम से खरीदी हुई एक अलग-ही प्रकार की अत्याधुनिक/उत्तराधुनिक शिक्षा से उपजी साहित्य-संगीत-कला-रसास्वादन की क्षमता, बोरियत से भरी हुई बड़ी बड़ी गोल आँखें और आम खूबसूरती के पैमानों के लिए एक अनूठी हेय दृष्टि आरक्षित होती है. खैर, इसकी व्याख्या दरअसल समय खराब करने सरीखा है इसलिए इसे फिलहाल ज़रा रहने ही दीजिये.

गहन आकर्षण से खिंचे हुए दुबेजी अचानक से अपने आप को इस लड़की के समक्ष पाते हैं.

लड़की की बोझिल, अलसाई हुई आँखें धीरे धीरे खुलती हैं और अपने हलके हलके झूमते हुए सिर के ठीक सामने एक सत्रहवीं सदी के नमूने को पाती हैं. एक तीखी टेढ़ी-सी मुस्कान उसके चेहरे पर फैल जाती है. दुबेजी अपने जीवन में पहली बार अपनी धोती में हलचल महसूस करते हैं और एक दबी हुई झल्लाहट से जेब के अभाव को कोसते हैं.

और एक टांग ज़रा पीछे किये, एक हाथ कमर पर डाले, अपने खुद की एक टेढ़ी मुस्कान से उस लड़की का प्रतिकार करते हुए दुबेजी कहते हैं:

"सप बेब ! हाओज़ इट गोइंग?"