सादा जीवन तुच्छ विचार
दुपहरें ऐसी लगती हैं, बिना मोहरों के खाली खाने रखने हैं,
न कोई खेलने वाला है बाज़ी; और न कोई चाल चलता है.
थक सा गया हूँ,
नींद सी आ रही है.
Post a Comment
No comments:
Post a Comment