Saturday, November 16, 2013

एक अदद बेपढ़

(टाइटल सत्यव्रत की कविता "एक अदद कम्बस्टिबल" से चोरी किया हुआ)

...

वो किताबें नहीं पढ़ता था
न पढ़ पाता था लोगों को
कुछ लोग तो ये तक कहते हैं
कि पढ़ना उसे आया ही नहीं

फाड़े वो आंतें लोगों की
खून गटक पी जाता था
चूलें हिला दे ज़ेहन की
खौफ से दिल थर्राता था
औ फोड़ के सोये से कपाल
वो मगज़ गूंथता आटा सा

नाक नक्श बेढब बदरंग
हाल हुलिये से निपट फ़कीर
काम बिगाड़क, उग्र विचारक
हम सरल सपाट, वो टेढ़ी लकीर
प्रचंड अनपढ़ था वो निश्चित
इक अदद बेपढ़ - जैसे कबीर

औ सफ़ेद पन्नों की स्याह हर्फ़ हम
उसकी रंगबाज़ी से जलते थे

2 comments:

ankurpandey said...

ऐसे अदद बेपढ़े पर कोटिन पढ़े निवारिये!

Nanga Fakir said...

<*हामी भरते हुए*>

निवारिये, निवारिये, निवारिये!