Monday, March 11, 2013

निर्मलवर्मागीरी

पढ़ना आजकल केवल सबवे की ट्रेनों में हो पाता है। 1, ई. (E) और आर. (R) ट्रेनों पर अक्सर मैं मोहन राकेशमनोहर श्याम जोशी या निर्मल वर्मा की किताबों के पन्नों पर ताकता हुआ दिखूंगा। पांडू और मेरा इसके लिए एक ख़ास नाम भी था: निर्मलवर्मागीरी। वैसे अगर हमें उस समय रोबर्तो बोलान्यो का नाम-पता मालूम होता, तो हम इसे बोलान्योगीरी की संज्ञा भी दे सकते थे। (वैसे अब जब इस बारे में सोचता हूँ तो लगता है कि निश्चित ही हम दोनों इस घुम्मकड़ लेखनी की प्रवृत्ति को बोलान्योगीरी ही कहते - निर्मल वर्मा के उदास, गहरे और आत्मा-हन्तारक रूप से दुखी कथानकों के बजाए हमें बोलान्यो की बकैती और पंक शैली (अमरीकी संगीत वाला पंक, भारतीय कमल नहीं!) अधिक जमती (वैसे भी उन दिनों हम पंक और ग्रंज संगीत के दीवाने हुए जा रहे थे!)लेकिन नाम में ले दे के कुछ रखा है नहीं, इसीलिए मेरा इस प्रकार का व्यवहार निर्मलवर्मागीरी ही कहलायेगा।

इस बार घर से लौटने के समय प्रेमचंद के किताबों की  के गठरी के साथ मैं कई एक कविताओं के संग्रह भी उठा लाया - इनमें तारसप्तक और चाँद का मुंह टेढ़ा है जैसे प्रतिष्ठित संकलन तो थे ही, साथ में केदारनाथ सिंहकुंवर नारायण, और गुलज़ार की कविताओं की किताबें भी थीं। (वैसे नामांकरण के बारे में पुनः सोचते हुए लगता है की मुक्तिबोध के बारे में भी ले दे के हम दोनों अनजान ही थे (शायद पांडू को अधिक मालूम था, लेकिन अपनी तरफ से मैं तो मुक्तिबोध का बस नाम ही जानता था - वो भी स्कूल के हिंदी सिलेबस के नाते) नहीं तो बकैती में मुक्तिबोध बोलान्यो से कुछ कम नहीं कहे जायेंगे!

सोचा था कि इस बार समय निकाल के कुछ अच्छी कविताओं का शौकिया अंग्रेज़ी अनुवाद करूंगा और ब्लॉग पे छाप डालूँगा। लेकिन आलस और आत्म-संशय के मारे (मनोहर श्याम जोशी के शब्द) कुछ ख़ास किया नहीं। अब जब ज़रा सा मौका मिला है तो सोचता हूँ कि शुरुआत करने में कोई बुराई नहीं है। इसलिए अपनी खुद की एक कविता का अनुवाद करता हूँ। वैसे ताज्जुब की बात है कि हालांकि कविताओं की कोई समझ बूझ नहीं है मुझमें, ये एक कविता जो लिखी थी पांडू के लिए (या फिर पांडू की एक तेजस्वी स्मृति के लिए) वह मुझे अभी तक पसंद है और इसे सुनने सुनाने में मुझे ज़रा भी शर्मिंदगी नहीं महसूस होती है। क्या जाने क्या कारण है? इसे इस ब्लॉग पे मैं पहले भी लिख चुका हूँ। यहाँ फिलहाल, उसे पुनः लिख कर अनुवाद पेश करता हूँ:



सोचा आज कि लिखूं 
एक टेस्टी तुम्हारी याद में 
याद उस दोपहर की उबासी की 
जब ब्रह्माण्ड तुम्हारे मुख में विलीन हो जाता था 
जब तिरछी पड़ती उस उदास धूप में 
तुम मुझे सत्य का दर्शन पढ़ाते थे 
और अँधेरे कोनों में जला कटा 
कुढ़े मन से 
एक साक्षर, सिनिकल सी मुस्कान लिए 
मैं, तुम्हारा प्रतिकार किया करता था 

जलता था मैं तुमसे 
जलता हूँ 
ताउम्र शायद जलता रहूँगा

अनुवाद:

Thought that I will write today
A testimonial in your memory
A memory of that idle afternoon
When the universe would dissolve in your mouth
When in the slanting shade of that sad sunlight
You would teach me the philosophy of truth
And in the dark corners unyielding
With a disgruntled mien
With an educated, cynical smile 
I would resist you

I was jealous of you
Am jealous
Lifelong perhaps, shall remain jealous 

3 comments:

ankurpandey said...

ये कविता न मेरे लिए है, न मेरी किसी 'तेजस्वी स्मृति' (उफ़!) के लिए.. ये सच है भी तो बस सत्यव्रत के लिए, या फिर उस समानांतर ब्रह्माण्ड में जिसमें सत्यव्रत कभी हो सकता था!

ankurpandey said...

और हाँ, अनुवाद अच्छा लगा। अपनी लिट-गिरी का इस्तेमाल करके धांसू कवियों का अनुवाद करो :)

ankurpandey said...

पिछली टिपण्णी डिलीट हो गयी लगती है, पुनःश्च :

ये कविता न मेरे लिए है, न मेरी किसी 'तेजस्वी स्मृति'(!?) के लिए..ये सच है भी तो किसी समानांतर ब्रह्माण्ड में हो सकने वाले सत्यव्रत के लिए!