Monday, November 19, 2012

शनिवार की सुबहें / बुरी स्मृतियों के गड़े मुर्दे

आओ श्रम के लिए, सेहत के लिए, हम करें रोज़ व्यायाम
देखे हमको सारी दुनिया, हम करें कुछ ऐसे काम

<*पेंपें-पेंपें-पें, पेंपें-पेंपें-पें, पें... पेंपें-पेंपें-पेंपें
पेंपें-पेंपें-पें, पेंपें-पेंपें-पें,
पें... पेंपें-पेंपें-पें*>

हम हैं नवयुग के निर्माता, काँधों पर बोझ उठाना है
हम हैं नवयुग के निर्माता, काँधों पर बोझ उठाना है
आगे बढ़ने की चाहत, पीछे ना कदम हटाना है
आगे बढ़ने की चाहत, पीछे ना कदम हटाना है
हम हैं मंज़िल के दीवाने, कर पड़े हैं हम अभियान
देखे हमको सारी दुनिया, हम करें कुछ ऐसे काम

...



कुछ यातनाएं अकेले समेटे रखना उचित नहीं है। उन्हें मित्रों के साथ बांटने से (सुनने में आया है) प्यार बढ़ता है।

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