Thursday, May 26, 2011
Sunday, May 22, 2011
बेजिन हाकुमेई के लिए !
ओजारुमारू मेरा नाऽऽम,
करूँ मैं बऽड़े - बऽड़े काऽऽम
ज़्यादा नहीं सोचता हूँ मैं
मस्त रहता हूँ सुबह-ओ-शाम
नए, एडवेंचर्स पे मैं जाऊं,
ये ही तो शौक है मेरा, चलो हम साथ में चलें!
ओजारूमाऽऽऽरू!
करूँ मैं बऽड़े - बऽड़े काऽऽम
ज़्यादा नहीं सोचता हूँ मैं
मस्त रहता हूँ सुबह-ओ-शाम
नए, एडवेंचर्स पे मैं जाऊं,
ये ही तो शौक है मेरा, चलो हम साथ में चलें!
ओजारूमाऽऽऽरू!
...
मज़े की बात ये है की जिस बंदी ने ये सिरीज़ बनाई (रिन इनिमारू), उसकी मौत आत्महत्या से हुई! किसी ने ठीक ही कहा है : अति सर्वत्र वर्जयेत (लम्पटगीरी में भी !)
Thursday, May 19, 2011
Quicksands of make believe
The Stockholm Syndrome Theory of Long Novels - a terrific piece on why you'd ever want to finish reading that million page tome. A long time sufferer who's currently held prisoner by Pynchon (Gravity's Rainbow - after nearly a year of efforts - on now, off again), NF connected to this clever observation on a rather fundamental level.
Fellow sufferer, understand thy ailment!
Fellow sufferer, understand thy ailment!
Tuesday, May 17, 2011
Shut the door
I burn a fire to stay cool
I burn myself,
I am the fuel
I never meant... to be cruel
...
Have you ever been cruel?
I burn myself,
I am the fuel
I never meant... to be cruel
...
Have you ever been cruel?
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