मुझे पश्चात्ताप की आग झुलसा रही है. कल रात सो के उठने के बाद अचानक से जैसे ये ख़याल ज़ेहन में कौंध सा गया.
"पापी...".
जाने में या अनजाने में, सोच-विचार के या यूँ ही, कमीनियत में या भलमनसाहत में -- जैसे भी हो, पापों का घड़ा भर-सा गया मालूम होता है. प्रायश्चित्त करने का वक्त आ चुका है.
कैसे हो यह उपक्रम? और क्यूँ हो? जो होना था सो तो हो चुका. तुम्हारे ये बेकार के जुगाड़ मात्र तुम्हारे अहम् को तुष्ट करने के ज़रिये हैं. ये उतने ही मूर्खतापूर्ण हैं जितना 'खून का बदला खून'. अगर इन्तक़ाम दार्शनिक दृष्टि से ग़लत है तो प्रायश्चित्त क्यों नहीं? दोनों एक ही प्रकार की स्वार्थपरक भावना के तुष्टीकरण हेतु अस्तित्वमान हैं. ये सब पुराने ज़माने के हठ योग -- ये सब मैसोकिज्म नहीं था तो क्या था? ये सब विकृत मानसिकता नहीं थी तो क्या था?
खैर, खूब सोचा. लेकिन जैसे चाहे जितना सोचो, बदला तो लेना ही पड़ता है, वैसे अब मुझे पश्चात्ताप भी करना ही पड़ेगा. (मुस्कुरा के) साले बड़े ग्लैमरस फंडे है!
कई तरीके हैं. लेकिन सबसे असरदार तो वो होंगे जो तुम्हारे शरीर को कष्ट देने का काम करेंगे. भूख, प्यास, नींद -- इन पर हमला बोला जाए. काम के घंटे बढ़ाए जायें. मौन व्रत धारण किया जाए. इस देह की सभी आरामतलबी का नाश किया जाए. सभी मनोरंजनों को आग लगा दी जाए. क्यों क्या कहते हो?
धीरे धीरे बात टॉर्चर तक पहुँचे. हाथ पैर पर आरियाँ चलायी जायें. (कसम से, मज़ा आ जाएगा).
फिलहाल ख़ुद को भूखा रखा जाए (दिन में एक बार तो खाना बनता है मगर... नहीं?).
फिलहाल मौन व्रत रखा जाए (ज़रूरत पर तो बोलना ही पड़ेगा मगर... नहीं?).
फिलहाल काम के घंटे बढ़ाए जायें (वीकेंड्स पर तो थोड़ा आराम बनता है मगर... नहीं?).
...
एंह...तुमने खूब सोचा मगर सब बकवास. तुम सही कह रहे थे. ये सब तो ख़ुद को खुश रखने के जुगाड़ हैं. सच में पश्चात्ताप करना है तो बस दो-तीन काम काफ़ी हैं.
एकांत में हमेशा अपने पाप स्मरण करो. जिन्हें तुम्हारे कारण कष्ट हुआ है, उनसे मिलो, उनके सामने नतमस्तक हो, और सच्चे दिल से माफ़ी मांगो. बस.
(नहीं...नहीं...नहीं...कतई नहीं).
<*शीशे पे पत्थर फ़ेंक के मारता है. टूटे हुए शीशे के टुकड़े हाथ में चुभते हैं, चेहरे पे खरोंच मारते हैं. खून ही खून. हँसता है, हँसता है, खूब दिल खोल के हँसता है*>
2 comments:
This was good!
I guess you are getting better at it.
सराहनीय, सहमत हूं इरा से. अलावा इसके भाषा में भी नये प्रयोग दिखते हैं.
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