देखो कैसे चढ़ते धड़ धड़
बस में कछुओं के झुण्ड
पीठें भारी, दबे तले
झुके बिचारे मुंड
फिर भी हँसते हैं
फ़ब्तियाँ कसते हैं
धकियाओ चाहे जितना
टस से ना मसते हैं
कभी-कभी कितने इंसानी लगते हैं
ये बच्चे भी!
बस में कछुओं के झुण्ड
पीठें भारी, दबे तले
झुके बिचारे मुंड
फिर भी हँसते हैं
फ़ब्तियाँ कसते हैं
धकियाओ चाहे जितना
टस से ना मसते हैं
कभी-कभी कितने इंसानी लगते हैं
ये बच्चे भी!
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