बाबू पुरानालाल अपने नाम के विपरीत, कुछ ख़ास पुराने विचारों के आदमी नहीं थे. यही नहीं, उन्होंने क़रीब दस साल विलायत में भी गुज़ारे थे, जहाँ उन्हें कुछ विशेष दौलत शौहरत तो नहीं, पर घर वापसी पर एक ऊँची पैठ जमाने को ज़रूर मिल गयी थी.
घर वापसी के बाद बाबू पुरानालाल देश के प्रति कुछ ख़ास जज़्बाती हो गए हों, ऐसा भी नहीं था. लेकिन ये ज़रूर था कि देश में उनके बड़े अच्छे दिन बीते. वे अपने काम में रूचि लेते थे, लोग उनका आम तौर पे सम्मान करते थे - और हाँ, उनकी बेहद पकाऊ और पेशाबी शख़्सियत के कारण उनका कोई दुश्मन वगैरह भी नहीं था. उनसे कभी आप पूछते तो वह यही कहते कि आम तौर पे वह अपनी ज़िन्दगी से संतुष्ट हैं, और उनके अधिकांश दिन बड़े आराम और मज़े में कटते हैं.
जब तट पर पानी बढ़ने लगा और लहरें इतनी ऊंची उठने लगीं कि अमीरों को अपनी मौज में खलल पड़ती मालूम हुई तब उनके कई दोस्तों, भाई-बहनों और रिश्तेदारों ने दूसरे देशों में पलायन करना शुरू कर दिया। कुछ सालों बाद बात इतनी बढ़ गयी कि खुद बाबू पुरानालाल के बच्चों ने भी खुद को विदेश के लिए रवाना होता पाया और अपने अड़ियल बाप से गुहार की कि वो भी देश से निकल लें. लेकिन बाबू पुरानालाल टाल गए - हँसते हुए कहने लगे - "अब जब सारे एलीट देश छोड़ के जा रहे हैं तो सत्ता की खींचतान में कम्पटीशन कम होगा - मेरे लिए तो यहीं बेहतर है."
कई दशकों बाद भी विदेश में सेटल्ड बाबू पुरानालाल की संतानें अपने बच्चों को बाबूजी की देशभक्ति की कहानियां सुनाते पायी जा सकती थीं.
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क्या बाबू पुरानालाल देशभक्त थे? क्यों? अथवा क्यों नहीं? सविस्तार जवाब दीजिये (10 अंक)