Friday, April 02, 2010

दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई

कुछ रोज़ से वक़्त कुछ यूं गुज़ारा जाता है - शाम को उठना, तनिक चहलकदमी उपरांत काम की कोशिश और जबड़ा फैलाए, लार टपकाते, इंतज़ार में बैठे मौत के घंटे से (जो मई के अंत में बजने के मूड में है) चंद लम्हे चुरा कर नागराज और ध्रुव के रोमांचक कारनामों का लुत्फ़ उठाना और उनके भीषण पराक्रम और धमधमात्मक लड़ाइयों का; और महामानव, त्रिमुंड और ड्रैकुला सरीखे मंजे हुए दर-शैतान खलनायकों के चीर हरण और मान मर्दन का ऐसे कुछ लम्पट ब्लॉग पोस्ट्स में बखान करना.
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ये पोस्ट निम्न कॉमिक्सों के अध्ययन के आधार पर लिखी गयी हैं:
१) परकाले
२) ज़लज़ला
३) ड्रैकुला का अंत
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'धमधमात्मक' नामक शब्द का कोई अस्तित्व नहीं है. (लेकिन चूंकि सुनने में सॉलिड लगता है इसलिए इसका ऐसा इस्तेमाल किया गया, जैसा इस्तेमाल किया गया.)
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पांडू/सत्यव्रत का नया हिंदी ब्लॉग ज़रूर देखें - सॉलिड कवितायें. ज़ीरो लम्पटगीरी.

लिंक.

1 comment:

  1. हेहे. प्रसारण के लिए शुक्रिया. उम्मीद है अब कुछ हौट चिक्स भी मेरा ब्लॉग पढ़ने को प्रेरित होंगी.

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